यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, 30 अप्रैल 2018

कर दूर ह्रदय की समरसता

यह प्रेम हृदय की प्रथम चाह
स्वर्गगंगा सा पावन उज्ज्वल
रति का कुंकुम श्रृंगार मधुर
जड़ता में चेतन की हलचल

यदि प्रत्यावर्तन  सम्भव हो
मानव क्यों जलना वरण  करे
क्यों पी पी चातक रटा करे
क्यों शलभ प्रीति में मरण करे

यह सृष्टि सदा से मोहमयी
मानव ने बांटी है कटुता
वह कितना गरल उड़ेल रहा
कर दूर ह्रदय की समरसता
@मीना गुलियानी

मत और किसी को दे देना

सागर से रूठी कभी नहीं
सरिता की मादक लाल लहर
खग से न गई क्षण भर भूली
विस्तृत नभ की स्वच्छन्द डगर

तुम मोहमयी स्वर्णिम छाया
जिससे यह प्राण हुए शीतल
सरळे सारल्य तुम्हारा ही
विश्वास बना मेरा अविचल

सब कुछ चाहे जग छीन चले
पर वह  विश्वास न खो देना
मेरा संबल अवलम्ब वही
मत और किसी को दे देना
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 28 अप्रैल 2018

ख़्वाब पूरे होते होते

 तुम्हारी याद आई शाम होते होते
बुझने लगा चिराग़ शाम होते होते

ग़म के दरवाज़े भी खुलने लगे
तेज़ रूख़ हवा का होते होते

जाने कौन कैसे दिल में समाया
टूटे सब ख़्वाब पूरे होते होते
@मीना गुलियानी


शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018

तेरे ग़म से इंतकाम लिया

मेरे नसीब ने फिर मेरा इम्तेहान लिया
तेरी यादों ने चुपके से दिल थाम लिया

हवा भी सर्द हुई दिल भी तो बेचैन हुआ
आई शाम तो दिल ने तेरा नाम लिया

मैं तो चुपचाप रहा कुछ न तुझे बोल सका
मेरी तमन्नाओं ने जाके तेरा सलाम लिया

दिए गम तूने मैंने कोई शिकवा न किया
मेरी ख़ुशी ने तेरे ग़म से इंतकाम लिया
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 26 अप्रैल 2018

कौन सुने मालूम न था

दिल की बस्ती लूट जायेगी
हमको ये मालूम न था
टूटेगा दिल किसी के हाथों
राज़ हमें मालूम न था

दिल ने हमें मजबूर किया तो
मौज में अपनी बहने लगे
न थी फ़िक्र अंजाम की हमको
आगाज़ भी मालूम न था

अपने आँसू हम पी जाएँ
ठंडी आहें ख़ामोशी से
सन्नाटे में फरियाद दिल की
कौन सुने मालूम न था
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 25 अप्रैल 2018

सामने साहिल आ जाए

चिलमन से न तुम ऐसे झाँको
जो कौंध के बिजली गिर जाए

बेताबिए दिल का ख्याल करो
दो पल ही सुकूँ बस मिल जाए

जज़्बात जुबां पर गर आएँ
डर हमको है रुसवाई का

हर अश्क बहे जो आँखों से
खुद एक फ़साना बन जाए

हर तूफ़ां से टकराया हूँ
है सैलाबों से प्यार मुझे

या रब मैंने कब चाहा है
कि सामने साहिल आ जाए 
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 24 अप्रैल 2018

फिर से सपने बुनने लगी

दिन ढलने लगा रेत सा
वक्त फिर फिसलने लगा
तुम्हारा  स्निग्ध स्पर्श पाकर
मन फूल सा खिलने लगा
तुमसे कुछ माँगा नहीं मैंने
कभी कुछ चाहा नहीं मैंने
बस तमन्नाओं में ही मेरा
वक्त यूँ गुज़रने लगा
हर वक्त तुम्हें देखने का
तुम्हें पुकारने ढूँढने का
मेरा मन करता रहता
तुमने जब हाथ पकड़ा
उस स्पर्श की सिहरन से
दिल का साज़ बजने लगा
तेरे दर्द की कसक मेरे
दिल में जगने लगी
बंद आँखों में भी दिल के
एहसास जगने लगे और
फिर से सपने बुनने लगी
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 23 अप्रैल 2018

आँधियो से बचाना पड़ता है

जिंदगी के साथ कदम मिलाकर चलना पड़ता है
वक्त के साथ खुद को बदलना भी पड़ता है

राहों में मुश्किलें तो आती जाती रहती हैं
लगे जो ठोकर तो खुद सम्भलना पड़ता है

माना कि हर तरफ अँधेरा है छाया हुआ
दिल के चिरागों को रोशन रखना पड़ता है

हर कोई शख़्स ताउम्र तो साथ नहीं देता
अपने ग़म को छुपाकर हँसना भी पड़ता है

वक्त तो हमेशा ही आँख मिचौली खेलता है
जिंदगी के फूल को आँधियो से बचाना पड़ता है
@मीना गुलियानी


रविवार, 22 अप्रैल 2018

वादा कौन करेगा

दुःख में पीड़ा कौन हरेगा
मन के सूने पनघट पर
नीर बताओ कौन भरेगा

हम सब दिल के हाथों बंदी
कोई न साथी न कोई संगी
अरमानों में रुदन छिपाए
ऐसी है ये दुनिया दोरंगी
सुख पर है पीड़ा का पहरा
मुक्त दुःखों से कौन करेगा

पल दो  पल के हैं सब नाते
मतलब के सब झूठे वादे
सबको केवल खुद की चिंता
कौन किसी के दुखड़े बाँटे
सदा किसी का साथ निभाए
ऐसा वादा कौन करेगा
@मीना गुलियानी

शनिवार, 21 अप्रैल 2018

साहिल ने ठुकराया मुझको

ये अन्जान राहें घेर लेती हैं मुझको
तेरी सदा झकझोर देती है मुझको

नहीं कोई अपना जाएँ तो जाएँ हम कहाँ
जिंदगी भी चुपके से क्या कह जाती मुझको

मुझे कोई गिला न शिकवा है किसी से
बुझता चिराग हूँ रोशनी की तलाश मुझको

क्यों सबकी निगाहें गैरों सी लगती हैं
सहारा न कोई साहिल ने ठुकराया मुझको
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

मगर बात नहीं होती है

कैसे कहदूँ कि मुलाक़ात नहीं होती है
मिलते वो रोज़ हैं पर बात  नहीं होती है

वो कभी भूले से भी पूछते जो हाल मेरा
दिन तो कट जाता है पर रात नहीं होती है

तुम कभी भूले से भी आइना देखा न करो
खुद पे मिट जाना बड़ी बात नहीं होती है

चुपके दुनिया से पहरों आँसू हम बहाते हैं
कब इन आँखों से बरसात नहीं होती है

गर वो सामने आ जाएँ तो पूछें हम कैसे
नज़रें मिलती हैं मगर बात नहीं होती है
@मीना गुलियानी







गुरुवार, 19 अप्रैल 2018

सच्चा होना चाहिए

जिंदादिली से सफ़र तय होना चाहिए
ख़ुशी से जीवन ये बसर होना चाहिए

जिंदगी में कई लोग मिल जायेंगे
खुद में कोई हुनर होना चाहिए

प्यार किस्मत में तुमको मिले न मिले
बेवफ़ा न मगर कभी होना चाहिए

दिल लगाके  दगा न करना कभी
इरादा दिल में सच्चा होना चाहिए
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 18 अप्रैल 2018

जीतना सीख लिया

ऐ गम की परछाइयों
तुम दूर रहो मुझसे
मेरा पीछा करना छोड़ो
मेरा तुम्हारा मेल नहीं
मैंने अब जीना सीख लिया
घुट घुट के बहुत जी लिए
अब कड़वे घूँट पीके भी
मैंने जीना सीख लिया
सागर में मौजो के हाथों में
पतवार ही जब सौंप दी
फिर तूफां से डर कैसा
मंझधार से तैरना सीख लिया
नीला अंबर मेरा प्रहरी बना
बिजली मुझे राह दिखाती है
हर मोड़ पे ग़म की बदली
मुझे देखके अब घबराती है
डर लगता नहीं किसी हार से
हर हार  से जीतना सीख लिया
@मीना गुलियानी

मंगलवार, 17 अप्रैल 2018

खुशहाल बनाओ तुम

चहुँ ओर मचा है हाहाकार
बर्बादी का मचा है तांडव
नौजवानों जागो तुम
अब निद्रा को त्यागो तुम
शिवजी का डमरू भी बोले
डम डम डम हर हर भोले
अब तो अलख जगाओ तुम
आगे कदम बढ़ाओ तुम
मर्यादा हो रही तार तार
हर तरफ है भ्रष्टाचार
स्त्री की मर्यादा रहे सुरक्षित
दहेज का कलंक मिटाओ तुम
कहाँ  है अब वो देश हमारा
कहते थे जिसे हम सोन चिरैया
अब वीणा की तान भी टूटी
कैसे होगा ता ता थैया
अब वीणा के  तार कसो  तुम
नारी की पीड़ा को हरो तुम
तुम पर है सबको भरोसा
देश को खुशहाल बनाओ तुम
@मीना गुलियानी

करना चाहती हूँ

मैं अपने अन्तर  के
अन्धकार को भेदकर
प्रकाश पुंज को
पाना चाहती हूँ
इड़ा पिंगला सुषुम्ना
का संगम मैं स्वयं
खुले नेत्रों से
देखना चाहती हूँ
अनहद का नाद
सुनना चाहती हूँ
त्रिकुटी के अमृत
का स्वाद भी
चखना चाहती हूँ
उस अनन्त में
 खुद को विलीन
करना चाहती हूँ
@मीना गुलियानी 

रविवार, 15 अप्रैल 2018

फिर कोई महत्व नहीं

संघर्ष भरा हो जब जीवन
 टूटा हुआ हो जिसका मन
उसके आगे सुख सागर का
रह जाता कोई महत्व नहीं

जब मन किसी का आहत हो
किसी के अप्रिय वचनों से
फिर बाद में बोले मृदु वचन
मन होगा कभी संतुष्ट नहीं

कहने को सभी अपने बनते
पर दुःख में साथ नहीं देते
फिर सुख में बने संबंधी जो
उस रिश्ते का औचित्य नहीं

जब फसलें सूखे जल के बिन
धरती की छाती भी फट जाए
फिर बरसे अंबर से पानी
उसका फिर कोई महत्व नहीं
@मीना गुलियानी

शनिवार, 14 अप्रैल 2018

दुनिया लुटाई है

दिल की क़शमक़श और उलझनों में
उम्मीद की अपनी मैंने ढाल बनाई है

जिंदगी तुझसे आगे निकलने को
मैंने भी तो अपनी रफ़्तार बढ़ाई है

तुझसे खेलने में मज़ा आने लगा है
जीतने के लिए  हौसला अफ़ज़ाई है

माना कि कुछ पल ग़म के मिले हैं
सुनहरे पलों ने कीमत चुकाई है

ये लहरें तूफ़ां क्यों टकराएं मुझसे
मैंने वफ़ा के नाम दुनिया लुटाई है
@मीना गुलियानी


शुक्रवार, 13 अप्रैल 2018

आ मिल मुझसे

वक्त तू क्यों
रेत सा बनकर
,मेरे हाथों से
फिसला जाता है
क्यों रुकता नहीं
तू पल भर भी
कितना तड़पाता है
मेरे साथ चल
मत आगे निकल
न बन निष्ठुर
मत कर व्याकुल
दिल पस्त हुआ
तू मस्त हुआ
बढ़ती धड़कन
रूकती साँसे
कहती तुझसे
आ मिल मुझसे
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 12 अप्रैल 2018

गाँव वो हमारा हो

आओ नदिया के उस पार चलें
वहाँ कल कल जलधारा बहती है
ठंडी हवाएँ  मन को मोहती हैं
फूलों की सुरभि मदहोश करती है
सन सन फ़िज़ाएं बहकाती हैं
जहाँ पर्वत से सुरम्य झरने बहते हैं
बरगद के पेड़ की छाँव में चलें
वहाँ हम दोनों प्रेम से झूला झूलें
एक दूसरे के सारे गिले शिकवे भूलें
अपना प्यारा सा घर वहीं बसाएं
सुन्दर सपनों से उसे हम सजाएँ
जहाँ धरती से मिलता आसमान हो
दुःख दर्द का नामोनिशान न हो
जहाँ सब हिलमिल कर रहते हों
दुःख सुख सब सांझा करते हों
जहाँ सिर्फ प्रेम और भाईचारा हो
ऐसा प्यारा सा गाँव वो हमारा हो
@मीना  गुलियानी 

बुधवार, 11 अप्रैल 2018

बेकार हठ करते हो

तुम्हारा चेहरा सब कुछ  बयां करता है
जो तुम्हारा मन गुस्ताखियाँ करता है

एक झलक पाने को कितना चलते हो
सफर है मुश्किल पर नहीं  समझते हो

 मुकदद्ऱ में नहीं बेकार ज़िद करते हो
तकदीर बदलने को क्या कर गुज़रते हो

लौट भी जाओ मान लो तुम कहना मेरा
मिलेंगे फिर कभी बेकार हठ करते हो
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 10 अप्रैल 2018

गुनगुनाने की सदा आ रही है

एक दिन मैंने जिंदगी से पूछा
तुम इतनी तेज़ क्यों दौड़ रही हो
कुछ देर मेरे पास बैठो बात करो
तुम्हारा साथ मेरे मन को भाता है
तुमसे बात करने में मज़ा आता है
तुम मेरी हमराज़ हो, हमदर्द हो
 तुम्हारा हाथ थामकर भूले हुए
वो पल मुझे याद फिर आने लगे
फूलों को देखकर मुस्कुराने लगे
बरखा की फुहार पड़ते ही मेरा मन
ख़ुशी से भीगकर झूमने लगा
जिंदगी के इस पड़ाव पर हमें
वक्त मिला साथ साथ जीने का
वो पल संजीदगी भरे भी थे
सुकून भी देते थे कुछ हमारी वो
अल्हड़पन की यादें ताज़ा हो जाती थीं
पेड़ों के झुरमुट में एक दूसरे को
ढूंढते हुए फिर खो से जाते थे
भूले बिसरे गीत गुनगुनाते थे
रंग  बिरंगे चित्रों से हम अपनी
जिंदगी का कैनवास सजाते थे
अब सारे सुहाने सपने टूट गए हैं
हमसे अपने सब जैसे रूठ गए हैं
जिंदगी भी मुझसे दूर जा रही है
उसके गुनगुनाने की सदा आ रही है
@मीना गुलियानी



सोमवार, 9 अप्रैल 2018

हम धोखा न करेंगे

हम तुमसे कभी कोई तकाज़ा न करेंगे
तुम्हें खुद की नज़र में रुसवा न करेंगे

चाहे  तुम कुछ भी सोचो शिकवा न करेंगे
तुमको हम भूले से भी तन्हा न करेंगे

माना कि तेरे मेरे ख्यालात अलग हैं
हम फिर भी तुझसे झगड़ा न करेंगे

उठ जाएँ सभी चाहे तेरी महफ़िल से सनम
पर तेरी महफ़िल को हम सूना न करेंगे

चाहे तूने खाए हों फरेब इस जहान से
पर इतना तय है हम धोखा न करेंगे
@मीना गुलियानी 

रविवार, 8 अप्रैल 2018

गैरों से निभाते गए

जाने क्या बात थी कि बस चलते गए
न किसी से कुछ खा न सुना चलते गए
जाने किस धारा में हम भी बहते गए

सारे रिश्ते नाते सब पीछे छूट गए
सब अपने बेगाने हमसे रूठ गए
हम तो सबसे गाफिल चलते गए

सजाया था हमने अपना आशियाना
हर गम चाहा था हमने भी भुलाना
मिला न अपना गैरों से निभाते गए
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 7 अप्रैल 2018

यह सोचने का विषय है ?

वृद्धजन बरगद के पेड़
की तरह ही होते हैं
इनकी संगत में बड़ा
सुकून मिलता है
सिर पर छाया होती है
जीवन में जब कभी
हौंसले पस्त होने लगते हैं
यही वृद्धजन राह दिखाते हैं
उनकी सीख से नया
आयाम मिलता है
जीवन की खुशहाली का
राज़ उजागर होता है
अत: वृद्धजनों का हमेशा
आदर सम्मान करो
उन्हें प्रेम ,स्नेह की ही
आकांक्षा है और कुछ नहीं
अपना सारा जीवन वो
संतान की परवरिश पर
गुज़ार देते हैं पर उनके
वृद्ध होने पर वही बच्चे
क्यों उन्हें ठुकराते हैं
क्यों उनका ध्यान नहीं रखते
जिसकी उन्हें आवश्यकता है
यह सोचने का विषय है ?
@मीना गुलियानी 

सबकी नज़रें टिकी यहाँ पर

दिल पे जब हो बोझ ये भारी
कैसे कोई मुस्कुराए दम भर

शाखों पर भी वीरानी है
नहीं कोई हरियाली इन पर

कैसे कोई पंछी चुगेगा दाना
उनके पँख भी कटे यहाँ पर

कैसे निकलें घर से बाहर
सबकी नज़रें टिकी यहाँ पर
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2018

सब निष्काम है

जिंदगी ज़िन्दादिली का नाम है
है नहीं ऐसी तो फिर नाकाम है

जिसने खुद्दारी से जीना सीखा है
हँसते हँसते जीना मरना सीखा है
ठोकरों पे उसकी सारा जहान है

जिसने लुटा दी जा वफ़ा के नाम पर
मिटा दी हस्ती भी उसके नाम पर
मौत उसके लिए हँसी पैगाम है

खूब शान से जीना तुमने सीख लिया
खा पीकर आराम से रहना सीख लिया
बिन अंतर्मन सफर के सब निष्काम है
@मीना गुलियानी

गुरुवार, 5 अप्रैल 2018

घर तो जला नहीं है

करूँ क्या ज़िक्रे मैं बेवफ़ाई
मुझे किसी से गिला नहीं है

नदी हूँ  इक तन्हाई की मैं
किनारा कोई  मिला नहीं है

पुकारा है मेरे दिल ने तुमको
लबों पे लेकिन सदा नहीं है

दिलों में धुँआ सा उठ रहा है
कोई  घर तो जला नहीं है
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 4 अप्रैल 2018

हम भी जी न पायेंगे

जिंदगी में जीने के कई पड़ाव आयेंगे
गुज़रोगे जहाँ से तुम हम साथ आयेंगे

खाएँ गर ठोकर तो तुम बचा लेना
देना सहारा गिरे गर तो उठा लेना
दिलों में अब कभी फांसले न आयेंगे

बहारें बीत गईं तो खिज़ा भी जायेगी
ये बहारें फिर लौटकर भी आयेंगी
दिन सुहाने जो गुज़रे साथ लौट आयेंगे

अजीब सी बेकरारी घेर लेती है मुझको
तन्हाईयाँ बोलती हैं तुम पुकारो मुझको
जुदा जो तुमसे हुए हम भी जी न पायेंगे
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 3 अप्रैल 2018

चाँदनी को झूला झुलाया

फ़लक से उतरी चाँदनी
बालों को यूँ छितराए हुए
फूलों का उसमें गजरा सजाके
माथे पे कुमकुम लगाए हुए
पायल की रुनझुन बजाती
नाचे मन मयूरा थिरककर
पहनी है मणियों की मेखला
सितारों की चूनर सिर  पे सजाई
चंदा को देखा तो वो लज्जाई
शर्मा के उसने चेहरा छिपाया
बदली का उसने घूँघट बनाया
पहना हिम का मुकुट सर पर
फीका हीरों का हार उस पर
श्वेतवर्णा अप्रतिम सौंदर्य की
वो थी कोमलांगी बाला
जिसने सबपे जादू कर डाला
हाथों में कंगन जुगनू से चमकें
हीरे मोती भी उसमें दमकें
उसने घुमाके जो नज़रे उठाईं
फूलों ने सज़दे में चादर बिछाई
सुंदर पगों में महावर रचाई
दिलों में अप्सरा बन समाई
किरणों का उसने हिन्डोला बनाया
चन्दा  ने चाँदनी को झूला झुलाया
@मीना गुलियानी

सोमवार, 2 अप्रैल 2018

तुम ही मेरे प्राण आधारा

मैं तो माटी का दिया हूँ
तुम ही इसकी बाती हो
साँसे मेरी तब ही चलेंगी
जब तक दिया और बाती है
बिन बाती के मोल नहीं कुछ
बाती से ही दीप हो रोशन
ऐसे ही तुम जीवन को मेरे
अपने प्रेम से करते रोशन
मन मेरा इक अँधा कुँआ है
तुमसे ही फैला उजियारा
तुम ही तो जीवन धन मेरे
तुम ही मेरे प्राण आधारा
@मीना गुलियानी 

रविवार, 1 अप्रैल 2018

मुझको निशानी दे गया

कोई ऐसे गया तन्हा मुझे छोड़कर
कुछ यादें सुहानी मुझे वो दे गया

पीछे छोड़े हैं उसने अधूरे से ग़म
साथ यादें न होतीं तो मर जाते हम
चन्द साँसें वो साथ हमारी ले गया

बीते लम्हों में दिखती कहानी उसकी
गुज़रे पलों में बिखरी हैं यादें उसकी
जाते जाते वो आँखों में पानी दे गया

फिर वो आया तो जाने न देंगे उसे
इन पलकों में बंद कर लेंगे उसे
प्रीत अपनी मुझको निशानी दे गया
@मीना गुलियानी