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सोमवार, 30 अप्रैल 2018

कर दूर ह्रदय की समरसता

यह प्रेम हृदय की प्रथम चाह
स्वर्गगंगा सा पावन उज्ज्वल
रति का कुंकुम श्रृंगार मधुर
जड़ता में चेतन की हलचल

यदि प्रत्यावर्तन  सम्भव हो
मानव क्यों जलना वरण  करे
क्यों पी पी चातक रटा करे
क्यों शलभ प्रीति में मरण करे

यह सृष्टि सदा से मोहमयी
मानव ने बांटी है कटुता
वह कितना गरल उड़ेल रहा
कर दूर ह्रदय की समरसता
@मीना गुलियानी

3 टिप्‍पणियां:

  1. यह सृष्टि सदा से मोहमयी
    मानव ने बांटी है कटुता
    वह कितना गरल उड़ेल रहा
    कर दूर ह्रदय की समरसता
    .
    वाह वाह वाह वाह और बस वाह वाह ही
    बहुत ही उम्दा... और आलंकारिक रचना आदरणीया
    👏👏👏👏👏👏

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