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मंगलवार, 3 अप्रैल 2018

चाँदनी को झूला झुलाया

फ़लक से उतरी चाँदनी
बालों को यूँ छितराए हुए
फूलों का उसमें गजरा सजाके
माथे पे कुमकुम लगाए हुए
पायल की रुनझुन बजाती
नाचे मन मयूरा थिरककर
पहनी है मणियों की मेखला
सितारों की चूनर सिर  पे सजाई
चंदा को देखा तो वो लज्जाई
शर्मा के उसने चेहरा छिपाया
बदली का उसने घूँघट बनाया
पहना हिम का मुकुट सर पर
फीका हीरों का हार उस पर
श्वेतवर्णा अप्रतिम सौंदर्य की
वो थी कोमलांगी बाला
जिसने सबपे जादू कर डाला
हाथों में कंगन जुगनू से चमकें
हीरे मोती भी उसमें दमकें
उसने घुमाके जो नज़रे उठाईं
फूलों ने सज़दे में चादर बिछाई
सुंदर पगों में महावर रचाई
दिलों में अप्सरा बन समाई
किरणों का उसने हिन्डोला बनाया
चन्दा  ने चाँदनी को झूला झुलाया
@मीना गुलियानी

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाह अप्रतिम!!अंलकारों से सुसज्जित कोमल सुंदर मन भावन श्रृंगार रचना ।

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  2. रस छंद अलंकार सब मोती जैसे पिरो दिये
    लफ्ज लफ्ज मोती से भासित मुक्ता मणि सा हार लगे

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