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गुरुवार, 12 अप्रैल 2018

गाँव वो हमारा हो

आओ नदिया के उस पार चलें
वहाँ कल कल जलधारा बहती है
ठंडी हवाएँ  मन को मोहती हैं
फूलों की सुरभि मदहोश करती है
सन सन फ़िज़ाएं बहकाती हैं
जहाँ पर्वत से सुरम्य झरने बहते हैं
बरगद के पेड़ की छाँव में चलें
वहाँ हम दोनों प्रेम से झूला झूलें
एक दूसरे के सारे गिले शिकवे भूलें
अपना प्यारा सा घर वहीं बसाएं
सुन्दर सपनों से उसे हम सजाएँ
जहाँ धरती से मिलता आसमान हो
दुःख दर्द का नामोनिशान न हो
जहाँ सब हिलमिल कर रहते हों
दुःख सुख सब सांझा करते हों
जहाँ सिर्फ प्रेम और भाईचारा हो
ऐसा प्यारा सा गाँव वो हमारा हो
@मीना  गुलियानी 

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