दिन ढलने लगा रेत सा
वक्त फिर फिसलने लगा
तुम्हारा स्निग्ध स्पर्श पाकर
मन फूल सा खिलने लगा
तुमसे कुछ माँगा नहीं मैंने
कभी कुछ चाहा नहीं मैंने
बस तमन्नाओं में ही मेरा
वक्त यूँ गुज़रने लगा
हर वक्त तुम्हें देखने का
तुम्हें पुकारने ढूँढने का
मेरा मन करता रहता
तुमने जब हाथ पकड़ा
उस स्पर्श की सिहरन से
दिल का साज़ बजने लगा
तेरे दर्द की कसक मेरे
दिल में जगने लगी
बंद आँखों में भी दिल के
एहसास जगने लगे और
फिर से सपने बुनने लगी
@मीना गुलियानी
वक्त फिर फिसलने लगा
तुम्हारा स्निग्ध स्पर्श पाकर
मन फूल सा खिलने लगा
तुमसे कुछ माँगा नहीं मैंने
कभी कुछ चाहा नहीं मैंने
बस तमन्नाओं में ही मेरा
वक्त यूँ गुज़रने लगा
हर वक्त तुम्हें देखने का
तुम्हें पुकारने ढूँढने का
मेरा मन करता रहता
तुमने जब हाथ पकड़ा
उस स्पर्श की सिहरन से
दिल का साज़ बजने लगा
तेरे दर्द की कसक मेरे
दिल में जगने लगी
बंद आँखों में भी दिल के
एहसास जगने लगे और
फिर से सपने बुनने लगी
@मीना गुलियानी
मध्यम लय मे चलती कोमल सुंदर श्रृंगार रचना।
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