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बुधवार, 31 जनवरी 2018

वक्त यादों में कैद हो जाता है

लम्हा लम्हा यूँ ही गुज़र जाता है
गुज़रा वक्त फिर लौटके न आता है

कीमती हो जाता है वो गुज़रा लम्हा
जब कोई दूर छिटककर चला जाता है

जब किसी को शिदद्त से याद करते हैं
पर वो सामने कभी नज़र नहीं आता है

आँख से निकले हुए आँसू की तरह
वो लम्हा लम्हा सरकता जाता है

यही सोचती हूँ कुछ वक्त और होता
गुज़रा वक्त यादों में कैद हो जाता है
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 30 जनवरी 2018

इक शमा सी जलाए हुए

मुदद्तें बीत गईं जिन्हें मुस्कुराए हुए
कहाँ जाएँ वो जग के ठुकराए हुए

खुश रहते हैं वो अपनी ही तन्हाई में
सदियाँ बीत गईं त्यौहार मनाये हुए

जिंदगी में जाने कितने ग़म समेटे हैं
अरसा गुज़रा है उनको मुस्कुराए हुए

किसी की याद में खोए हुए बैठे हैं
दिल में इक शमा सी जलाए हुए
@मीना गुलियानी

सोमवार, 29 जनवरी 2018

क्यों रूठ गए मुझसे

इस तरह ओझल हुए मेरी जिंदगी से
सारे रिश्ते जैसे टूट गए हों मुझसे

आँखों से दरिया इस कदर बहता न था
जाने ऐसी क्या ख़ता हो गई  मुझसे

पाँव रखें भी तो हम कहाँ पर रखेँ
दलदली ज़मी पर न उठते मुझसे

 सबब तो यकीनन जानते हैं सब
फिर भी जाने क्यों रूठ गए मुझसे
@मीना गुलियानी 

रविवार, 28 जनवरी 2018

मौसम जैसे रूठ गया मुझसे

ये कौन गुज़रा है मेरी गली से
 साये की तरह गुज़रा इधर से

न जाने किस सोच में फिरता हूँ
वो शख्स दे गया ज़ख्म किधर से

कैसी हवा चली पर बेअसर होकर
ज़ख़्म दिल का भरा गया न उससे

बुत की तरह जी रहा था अभी तक
आईने की तरह बिखर गया मुझसे

साथ था वो  धूप छाँव का एहसास था
अब तो मौसम जैसे रूठ गया मुझसे
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 27 जनवरी 2018

दिल में दर्द सा भरता रहा है

तेरे आने का धोखा सा हुआ है
दिया ये दिल का जल रहा है

सुना है रात भर बरसा है सावन
ये दिल फिर भी प्यासा रहा है

वो आलम कैसा गुज़रा है मुझ पर
नशा सा कोई जैसे चढ़ता रहा है

कैसे ढूँढूँ तुझको मैं इस जहाँ में
दिल में दर्द सा भरता रहा है
@मीना गुलियानी


शुक्रवार, 26 जनवरी 2018

रिमझिम बूँदें बरसने लगी है

आज फिर चिड़िया एक डाल पर फुदक रही है
वह यूँ फुदकती चहकती अच्छी लग रही है

कभी आम की डाली कभी अमरुद की डाली पर
कभी नीम की तो कभी जामुन की उस डाली पर

हवा की ताज़ी सौंधी सी खुशबु मन में भर रही है
प्रकृति की  सुरम्य छटा बसंत में निखर रही है

सरसों के पीले  फूल इस बगिया में खिलने लगे हैं
देखो बगिया संवर रही है ख़ुशी दिल में भर रही है

 भँवरे मंडराने लगे हैं मधुपान कर इतराने लगे हैं
लता पेड़ों का लेके सहारा देखो ज़रा तन के खड़ी है

नई भोर आई लाली है छाई उषा ने भी ली अंगड़ाई
सूरजमुखी ने आँखे खोली कुमुदिनी सुस्ताने लगी है

सितारे शर्माने लगे हैं घूँघट में मुखड़ा छिपाने लगे हैं
चंदा ओझल हुआ सूरज की किरणें जमी पे पड़ रही हैं 

प्रकृति संवरने लगी कुमकुम फूलों से झरने लगी है
संध्या रानी आई उसकी  पायलिया छनकने लगी है

कैसे न मोहित हों छटा पर आँखे ख़ुशी से झरने लगी हैं
 घटा छाई लेके बिजुरिया रिमझिम बूँदें बरसने  लगी है
@मीना गुलियानी


बुधवार, 24 जनवरी 2018

लब पर आती तो है

नदी की  कितनी चंचल है धारा
इस पार से उस पार जाती तो है

जीवन की लौ भी बुझने को है
सुलगाओ चिंगारी बाती तो है

भंवर में किश्ती डूबी तो क्या
टकरा के उस पार जाती तो है

न यूँ मायूस हो तुम इस कदर
रात के बाद भोर आती तो है

जिंदगी में बहुत दुःख झेले मगर
हँसी फिर भी लब पर आती तो है
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 23 जनवरी 2018

जो पिया न साथ में

आज हम फिर से निकले सुकूँ की तलाश में
चार कतरे आँसुओं के भी हो लिए साथ में

हम भुलाने तो चले हैं हर गुज़रे लम्होँ को
भूल कैसे पायेँगे जो दिन गुज़ारे साथ में

नामुमकिन लगता है तन्हा रहना तुझ बिन
वक्त ने फिर ला खड़ा किया ऐसे हालात में

लगता है आसमां भी गुमसुम सा बैठा हुआ
कोई तारा भी नज़र आता चंदा के साथ में

कहदो इन घटाओं से जाके बरस जाएँ कहीं
क्या मज़ा यूँ भीगने का जो पिया न साथ में
@मीना गुलियानी

सोमवार, 22 जनवरी 2018

मोतियों को न लुटाओ

जिंदगी के हर पल को ख़ुशी से बिताओ
जो हुआ सो हुआ उन सबको भूल जाओ

गया वक्त क्या कभी लौटा है किसी का
भुला दो बीते कल को न खुद को मिटाओ

गर चाहते हो ख़ुशी को गले से लगाना
वो पल जो हंसी थे उन्हें फिर दोहराओ

जिन्हें  याद करके भीगें पलकें तुम्हारी
अच्छा होगा गर उन लम्हों को भुलाओ

आंसू भी किसी की अमानत हैं तुम पर
इन बेशक़ीमती मोतियों को न लुटाओ
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 18 जनवरी 2018

दर्द सब बेअसर हो गए

आप जाने किधर खो गए
दुनिया में तन्हा हम हो गए

रात काटे ये कटती नहीं
दिन भी अब ज़हर हो गए

याद में तेरे छलनी जिगर
हर नज़र चश्मे तर हो गए

ज़ुल्म तो हम पे होते रहे
हादसों के शहर हो गए

ख़्वाब पलकों पे जो थे सजे
जिंदगी पे वो क़हर हो गए

मत पूछो मेरा  हाले दिल
दर्द सब बेअसर हो गए
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 17 जनवरी 2018

महल हमारे न टूट जाएँ

जिंदगी के फैसले जाने क्या हो जाएँ
यादों के सिलसिले जुड़ें या टूट जाएँ

वक्त की हलचल बनी हुई सी है
जाने कब किस मोड़ पे ले जाए

हर कदम सोचकर हम बढ़ा रहे हैं
मंजिल पे कदम न कहीं डगमगाएं

गैरों की बातों का शिकवा नहीं है
अपनों के अफ़साने हमको रुलाएं

हकीकत में हर लम्हा हँसके बिताया
ख्वाबों के महल हमारे न टूट जाएँ
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 15 जनवरी 2018

मित्र वही कहलाता है

जो मित्र की पीड़ा देखके
आँखों से अश्रु बहाता है
मित्र वही कहलाता है

फ़टी बिवाई सुदामा की
अश्रुजल से धुलवाता है
मित्र वही कहलाता है

जो उसके तप्त हृदय को
 स्नेह से सहलाता है
मित्र वही कहलाता है

जो आहत मन की पीड़ा को
प्रेम से अपने मिटाता है
मित्र वही कहलाता है

जिसका हृदय परपीड़ा में
तुरंत द्रवित हो जाता है
मित्र वही कहलाता है

रूखे सूखे भात छीनके
बड़े चाव से खाता है
मित्र वही कहलाता है
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 12 जनवरी 2018

रोते चेहरे भी मुस्कुराते हैं

हर पल डर हमें सताता है
कभी समाज का डर
कभी असफल होने का डर
अकेले हो जाने का डर
रिश्ते टूटने का डर
नाकारा साबित होने का डर
निर्णय से चूकने का डर
हम डर पर विजय पा सकते हैं
भावनाओं को नियंत्रित करके
तो लगेगा अँधेरे से निकले हैं
उजाले में आ पहुँचे हैं
किसी पहाड़ की चोटी पर हैं
या किसी पेड़ की छाँव में हैं
नदी की कल कल ध्वनि
पेड़ के पत्तों की सरसराहट
चिड़ियों का कलरव होना
ओस की बूंदों का गिरना
सब मन को लुभाता है
खुशियों के पल लौट आते हैं
प्रकृति से हम जुड़ जाते हैं
रोते चेहरे भी मुस्कुराते हैं
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 11 जनवरी 2018

दूर हो हर उलझन

मैंने महसूस की ओस की ताज़गी की छुअन
मिट्टी पर गिरी पहली बूंदों की वो सिहरन

पेड़ों की शाखाओं पर चिड़ियों की चहकन
 कोमल फूलों के प्रस्फुटन में डूबा ये मन

चाँद की चाँदनी में नहाकर अलसाया यौवन
इठलाता इतराता हुआ मधुर नेह का बंधन

मन का मदमाता हुआ प्रकृति से संगम
पक्षियों के कलरव में जुड़ने का उपक्रम

मन को सुकून देता है ये सुरम्य वातावरण
ईश्वर की चित्रकारी का होता है हमें दर्शन

हर  पीड़ा शमन करता आत्मिक उद्बोधन
अनुभूतियों में उतरकर दूर हो हर उलझन
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 9 जनवरी 2018

प्रेम का एहसास देते हैं

कुछ रिश्ते अनायास ही जुड़ जाते हैं
एक कच्चे धागे से ही बँध जाते हैं

ज़रूरत नहीं होती झूठी रिवायतों की
न ही इन्हें परम्पराओं में कसने की

ज़रूरत नहीं होती रोपने और सींचने की
ज़रूरत नहीं पड़ती खोखले रिवाज़ों की

फिर भी ये रिश्ते वटवृक्ष जैसे पनपते हैं
मन को सुकून प्रेम का एहसास देते हैं
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 8 जनवरी 2018

भूली दास्ताँ लिख रहा हूँ

रफ़्ता रफ़्ता याद में खोकर
भूली दास्ताँ लिख रहा हूँ

कहने को तो भीड़ बहुत है
 फिर भी तन्हा लिख रहा हूँ

तुमने पूछा है हाल जो मेरा
ख़ुद को अच्छा लिख रहा हूँ

हुई है रोशन तुमसे दुनिया
चंदा तुमको लिख रहा हूँ

इस ज़मीं से दूर फ़लक तक
तेरा आशियाँ लिख रहा हूँ

महक घुली है साँसो में तेरी
उसकी ऊष्मा लिख रहा हूँ
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 6 जनवरी 2018

पुनर्जीवित करवा दो

निःशब्द  हो गई है वीणा
फिर से कोई तान सुना दो
तार पड़  गए ढीले ढाले
फिर से इनको कसवा दो

मन में कितनी ही आशाएँ
बलवती हो उठीं बेलों सी
अमरलता कोई बन जाए
ऐसी कोई सुधा पिला दो

सुधियों के वो सुर प्याले
पड़ गए रीते अनचीन्हे से
उन प्यालों को स्पर्श से
तुम पुनर्जीवित करवा दो
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 3 जनवरी 2018

निःशब्द मूक मनुहार लिखूँ

तू कहे तो वीणा की जो बज उठी झंकार लिखूँ
 डूब गया अश्रुजल में वो दर्द भरा श्रृंगार लिखूँ

मन सिक्त हुआ है मेरा प्रेम पल्ल्वित होने से
नयनों की गगरी से छलकी अँसुअन धार लिखूँ

सपने हों पूरे ज़रूरी नहीं मंज़ूर हो अर्ज़ी ज़रूरी नहीं
मन कहता है उड़ जाने दो पंखों का विस्तार लिखूँ

अंतर्मन का है गठबंधन रूहों का रूहों से है मिलन
मत रोको खो जाने दो निःशब्द मूक मनुहार लिखूँ
@मीना गुलियानी 

अंतिम सोपान है

जीवन क्या है  ?
एक ऐसी महायात्रा
जो अनवरत चलती है
इसके तीन पड़ाव हैं
बचपन, यौवन , बुढ़ापा
सकारात्मकता ज़रुरी है
यही जीवंतता है
नकारात्मकता मृत्यु समान है
जड़ के समान नश्वर है
अपने विचारों से उभरना है
नैराश्य को जीवंतता में
परिवर्तित करना है
नए गंतव्य की तैयारी हेतु
स्वयं का मूल्यांकन करना
जीवन को सुधारना है
काम ,क्रोध,मद ,लोभ
नष्ट करना, कमल समान
व्यक्तित्व निखारना है
जीवन में उतार चढ़ाव
आते रहते हैं , आयेंगे
जीवन में हर पल को
 हँसते हुए गुज़ारना है
चित्त को शांत करना है
क्षमा मांगकर क्षमादान देकर
मन एकाग्र करना है
उस विराट को पाना है
यही जीवन का लक्ष्य है
जीवन का अंतिम सोपान है
@मीना गुलियानी