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गुरुवार, 11 जनवरी 2018

दूर हो हर उलझन

मैंने महसूस की ओस की ताज़गी की छुअन
मिट्टी पर गिरी पहली बूंदों की वो सिहरन

पेड़ों की शाखाओं पर चिड़ियों की चहकन
 कोमल फूलों के प्रस्फुटन में डूबा ये मन

चाँद की चाँदनी में नहाकर अलसाया यौवन
इठलाता इतराता हुआ मधुर नेह का बंधन

मन का मदमाता हुआ प्रकृति से संगम
पक्षियों के कलरव में जुड़ने का उपक्रम

मन को सुकून देता है ये सुरम्य वातावरण
ईश्वर की चित्रकारी का होता है हमें दर्शन

हर  पीड़ा शमन करता आत्मिक उद्बोधन
अनुभूतियों में उतरकर दूर हो हर उलझन
@मीना गुलियानी 

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