यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, 8 जनवरी 2018

भूली दास्ताँ लिख रहा हूँ

रफ़्ता रफ़्ता याद में खोकर
भूली दास्ताँ लिख रहा हूँ

कहने को तो भीड़ बहुत है
 फिर भी तन्हा लिख रहा हूँ

तुमने पूछा है हाल जो मेरा
ख़ुद को अच्छा लिख रहा हूँ

हुई है रोशन तुमसे दुनिया
चंदा तुमको लिख रहा हूँ

इस ज़मीं से दूर फ़लक तक
तेरा आशियाँ लिख रहा हूँ

महक घुली है साँसो में तेरी
उसकी ऊष्मा लिख रहा हूँ
@मीना गुलियानी 

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाह दी...!!!!! कविता में जिंदगी के मायनो को पिरो दिया आपने,"" कहने को तो भीड़ बहुत है फिर भी तन्हा रहा लिख रहा हूं मैं""छोटी सी मगर मन की व्यथा को प्रदर्शित करती सुंदर प्रभावशाली रचना ... धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं