नदी की कितनी चंचल है धारा
इस पार से उस पार जाती तो है
जीवन की लौ भी बुझने को है
सुलगाओ चिंगारी बाती तो है
भंवर में किश्ती डूबी तो क्या
टकरा के उस पार जाती तो है
न यूँ मायूस हो तुम इस कदर
रात के बाद भोर आती तो है
जिंदगी में बहुत दुःख झेले मगर
हँसी फिर भी लब पर आती तो है
@मीना गुलियानी
इस पार से उस पार जाती तो है
जीवन की लौ भी बुझने को है
सुलगाओ चिंगारी बाती तो है
भंवर में किश्ती डूबी तो क्या
टकरा के उस पार जाती तो है
न यूँ मायूस हो तुम इस कदर
रात के बाद भोर आती तो है
जिंदगी में बहुत दुःख झेले मगर
हँसी फिर भी लब पर आती तो है
@मीना गुलियानी
वाह!
जवाब देंहटाएंआशावादी उम्दा गजल ।