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बुधवार, 3 जनवरी 2018

निःशब्द मूक मनुहार लिखूँ

तू कहे तो वीणा की जो बज उठी झंकार लिखूँ
 डूब गया अश्रुजल में वो दर्द भरा श्रृंगार लिखूँ

मन सिक्त हुआ है मेरा प्रेम पल्ल्वित होने से
नयनों की गगरी से छलकी अँसुअन धार लिखूँ

सपने हों पूरे ज़रूरी नहीं मंज़ूर हो अर्ज़ी ज़रूरी नहीं
मन कहता है उड़ जाने दो पंखों का विस्तार लिखूँ

अंतर्मन का है गठबंधन रूहों का रूहों से है मिलन
मत रोको खो जाने दो निःशब्द मूक मनुहार लिखूँ
@मीना गुलियानी 

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