यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 12 जनवरी 2018

रोते चेहरे भी मुस्कुराते हैं

हर पल डर हमें सताता है
कभी समाज का डर
कभी असफल होने का डर
अकेले हो जाने का डर
रिश्ते टूटने का डर
नाकारा साबित होने का डर
निर्णय से चूकने का डर
हम डर पर विजय पा सकते हैं
भावनाओं को नियंत्रित करके
तो लगेगा अँधेरे से निकले हैं
उजाले में आ पहुँचे हैं
किसी पहाड़ की चोटी पर हैं
या किसी पेड़ की छाँव में हैं
नदी की कल कल ध्वनि
पेड़ के पत्तों की सरसराहट
चिड़ियों का कलरव होना
ओस की बूंदों का गिरना
सब मन को लुभाता है
खुशियों के पल लौट आते हैं
प्रकृति से हम जुड़ जाते हैं
रोते चेहरे भी मुस्कुराते हैं
@मीना गुलियानी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें