जिंदगी ज़िन्दादिली का नाम है
है नहीं ऐसी तो फिर नाकाम है
जिसने खुद्दारी से जीना सीखा है
हँसते हँसते जीना मरना सीखा है
ठोकरों पे उसकी सारा जहान है
जिसने लुटा दी जा वफ़ा के नाम पर
मिटा दी हस्ती भी उसके नाम पर
मौत उसके लिए हँसी पैगाम है
खूब शान से जीना तुमने सीख लिया
खा पीकर आराम से रहना सीख लिया
बिन अंतर्मन सफर के सब निष्काम है
@मीना गुलियानी
है नहीं ऐसी तो फिर नाकाम है
जिसने खुद्दारी से जीना सीखा है
हँसते हँसते जीना मरना सीखा है
ठोकरों पे उसकी सारा जहान है
जिसने लुटा दी जा वफ़ा के नाम पर
मिटा दी हस्ती भी उसके नाम पर
मौत उसके लिए हँसी पैगाम है
खूब शान से जीना तुमने सीख लिया
खा पीकर आराम से रहना सीख लिया
बिन अंतर्मन सफर के सब निष्काम है
@मीना गुलियानी
जिसने लुटा दी जा वफ़ा के नाम पर
जवाब देंहटाएंमिटा दी हस्ती भी उसके नाम पर
मौत उसके लिए हँसी पैगाम है.....वाह! बहुत उम्दा!!!
कविता की अंतिम पंक्ति...
जवाब देंहटाएं"बिन अंतर्मन सफर के सब निष्काम है"
पूर्ण सार.
सादर.