न पूछ मुझसे सब्र की इन्तहा कहाँ तक है
तू ज़ुल्म कर ले तेरी हसरत जहाँ तक है
न पूछो मुझसे ये नज़रें क्या ढूँढती रहती हैं
पूछो इनसे ये खुद से भी ख़फ़ा कहाँ तक हैं
आये ख्याल उनके तो आँखों में सिमट गए
मालूम न था इनको मुरव्वत कहाँ तक है
हुए मशहूर तुम तो हम भी मसरूफ हो गए
अब पता चला हमें तेरी शौहरत कहाँ तक है
काँधे पे ज़नाज़ा खुद का तलाशते राहबर को हम
किससे पूछे पता उसका जहाँ फैला कहाँ तक है
@मीना गुलियानी
तू ज़ुल्म कर ले तेरी हसरत जहाँ तक है
न पूछो मुझसे ये नज़रें क्या ढूँढती रहती हैं
पूछो इनसे ये खुद से भी ख़फ़ा कहाँ तक हैं
आये ख्याल उनके तो आँखों में सिमट गए
मालूम न था इनको मुरव्वत कहाँ तक है
हुए मशहूर तुम तो हम भी मसरूफ हो गए
अब पता चला हमें तेरी शौहरत कहाँ तक है
काँधे पे ज़नाज़ा खुद का तलाशते राहबर को हम
किससे पूछे पता उसका जहाँ फैला कहाँ तक है
@मीना गुलियानी
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