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मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018

चिंताएँ कभी खत्म होंगीं

क्या जीवन की चिंताएँ कभी खत्म होंगीं
हर व्यक्ति के साथ क्या उम्र भर रहेंगीं

सुबह सुबह से ही खाने पीने की चिन्ता
फिर नहा धोकर दफ्तर जाने की चिंता

बच्चों को स्कूल छोड़ आने की चिन्ता
ऐसे कब तक ये चिंता दिमाग में पलेगी

दफ्तर से आते ही घर में मचा रोना धोना
बच्चों के झगड़े बीबी के कमेंट पास होना

बनिये का बिल कभी दूध वाले का बिल
कभी राशन धोबी और डाक्टर का बिल

हालत हो जाए खस्ता आमदनी से ज़्यादा खर्चा
भरूँ मैं कहाँ से बिजली और पानी का खर्चा

जितनी कमाई करो पड़  जाए वो खटाई में
कुछ जाए उधार कुछ दर्ज़ी की सिलाई में

पड़ौसी भी मांगे उधार काम वाली को बुखार
घर पर टी वी मोबाइल का नेटवर्क भी बेकार
@मीना गुलियानी 

2 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. आम व्यक्ति और हर घर की चिंता और दिनचर्या आपने बखूबी वरव किया आपने यथार्थ रचना।
    सुंदर ।

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