अपनी किताब का पन्ना पलटता हूँ
एक और बसंत सा खिलता है
झरना सा झरने लगता है मुझमें
और मेरे मन के इस उपवन में
अनगिनत रंगों के फूल खिलते हैं
बारिश की बूँदें पत्तों पर गाती हैं
फूलों की खुशबु मन को लुभाती है
सुख दुःख की व्यथा भी सुनाती है
तन्हाई की यादें आँसुओं में ढलती हैं
मेरी अँगुलियाँ रेत पर थिरकती हैं
जिस पर अपनी तस्वीर उकेरता हूँ
@मीना गुलियानी
एक और बसंत सा खिलता है
झरना सा झरने लगता है मुझमें
और मेरे मन के इस उपवन में
अनगिनत रंगों के फूल खिलते हैं
बारिश की बूँदें पत्तों पर गाती हैं
फूलों की खुशबु मन को लुभाती है
सुख दुःख की व्यथा भी सुनाती है
तन्हाई की यादें आँसुओं में ढलती हैं
मेरी अँगुलियाँ रेत पर थिरकती हैं
जिस पर अपनी तस्वीर उकेरता हूँ
@मीना गुलियानी
अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंतन्हाई की व्यथा और रेत पर उभरती तस्वीर.... लाजवाब
जवाब देंहटाएंको छूनेवाली सुन्दर रचना है
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