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शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018

कटेगा कैसे बिना हमसफ़र

कैसा है यादों का सफर
बिखरे हुए हैं यादों पल
मन की चंचलता के पल
किसी सोच में डूबा मन
कहता मेरी अँगुली पकड़
क्या करूँ कहाँ मैं जाऊँ
चहुँ ओर  अँधेरा है अब
आगे जाते मन डूबता अब
कोई मनमीत साथी नहीं
 साथ जो विचरण करें अब
क्या करें कोई तो समझाए
क्या सब भूल जाऊँ अब
वो पल न जाने कैसे थे
बिखर गए सुनहरे स्वप्न
हो गईं अकेली शामें सुबहें
वो प्रेमालाप की धड़कन
सिर्फ यादें हैं चन्द लम्हों की
तन्हा है जिंदगी का सफर
कटेगा कैसे बिना  हमसफ़र
@मीना गुलियानी 

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