आसान नहीं था आकाश अपना तलाशना
आसान नहीं था मन का रास्ता नापना
क्योकि हर नज़र प्रश्न पूछ रही थी
उस पर मेरी खामोशी जुबान बन गई
मेरी हसरतों ने मुझे बेज़ार कर दिया
मंझधार को ही अपना साहिल बना दिया
@मीना गुलियानी
आसान नहीं था मन का रास्ता नापना
क्योकि हर नज़र प्रश्न पूछ रही थी
उस पर मेरी खामोशी जुबान बन गई
मेरी हसरतों ने मुझे बेज़ार कर दिया
मंझधार को ही अपना साहिल बना दिया
@मीना गुलियानी
१.मन रंजन दुखभंजन जन के
जवाब देंहटाएंयही तिहारो काज
सदा सदा मैं शरण तिहारी
तुम हो गरीबनेवाज
रघुवर तुमको मेरी लाज
तुलसीदास
गिलहरियों की पीठ पर निशान कैसे पडे
जवाब देंहटाएंरामचन्द्रजी सेना ले कर लंका पर हमला करने चले .सीता को रावण की कैद से मुक्त कराने के लिये. समुद्र को पार करना और उस पर पुल बनाना जरूरी था. पूरे समुद्र को सुखाने में कई जीवों की हत्या होती .
इसलिए सोचा गया कि सेना के जाने लायक समुद्र के थोड़े भाग को ही सुखाया जाये और वहां पत्थर की शिलाएं डाल कर एक पुल तैयार किया जाए.सारी वानर सेना इस काम में जुट गयी. एक छोटी सी गिल्ग्री भी यह सब देख रही थी.
वह भी आगे बढ़ी.वह समुद्र के पानी में पूँछ को गीला करती और किनारे की सूखी रेत पर लेट कर उसे सुखाती. मानो अन्याय के विरुद्ध लड़ने में राम की सहायता कर रही हो.अच्छी भावना से किया गया कोई भी प्रयास सराहनीय होता है,चाहे करने में कितनी भी कमियां उस में क्यों न हों.चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो.राम गिलहरी की इस भावना से बड़ा खुश हुए.उनका यह स्वभाव था कि कोई भी उनका जरा सा भी काम क्र दे वे उसका बड़ा उपकार मानते थे .उन्होंने गिलहरी को उठा कर प्यार से उसकी पीठ पर हाथ फेरा.कहते हैं गिलहरियों की पीठ पर तभी से निशान पड़े हैं.
अशोक—एक पुरानी कहानी