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शुक्रवार, 27 अक्टूबर 2017

अधिकार हमारा बाकी है

आहिस्ता चल मेरी जिंदगी
कुछ फ़र्ज़ निभाने बाकी हैं
कितना दुःख पाया है हमने
उसको भी मिटाना बाकी है

यूँ रफ्तार से तेरे चलने पर
अपने सब पीछे छूट गए
रूठों को मनाना बाकी है
रोतों को हँसाना बाकी है

,मेरी हसरतें पूरी हो न सकीं
कुछ ख़्वाब भी पड़े अधूरे हैं
जीवन में है कितनी उलझन
सबको सुलझाना बाकी है

कितने शिकवे इस रिश्ते में
मनुहार अभी तक बाकी है
मन के इस अवगुंठन पर
अधिकार हमारा बाकी है
@मीना गुलियानी 

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