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मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

कठिन डगरिया रे

प्रेम नगर की कठिन डगरिया रे
राही सम्भल सम्भल पग धरना

दूर  अति दूर छिपा है
हृदय चुरिइया रे
प्रेम नगर की कठिन डगरिया रे

विरह व्यथा की नाव तुम्हारी
कौन खिवैया रे
प्रेम नगर की कठिन डगरिया रे

कासे कहूँ पीर मै मन की
चपला चमके रे
प्रेम नगर की कठिन डगरिया रे

मेरी प्रीत के फूल अरे
देखो मुरझाये रे
प्रेम नगर की कठिन डगरिया रे 

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