यह ब्लॉग खोजें

रविवार, 20 दिसंबर 2015

मिलने न दिया


उनको मिलने की चाहत बहुत थी मगर 
अपनी मजबूरियों ने मिलने न दिया 

                न ही जीने दिया न ही मरने दिया 
                दिल ने मुझको कहीं का न रहने दिया 

दिल की बेताबियाँ दिल में ही घुट गई 
ख्याले रुसवाई ने कुछ न कहने दिया 

                लाख सोचा सिजदा करें ख़्वाब में 
                 बेरहम चाँद ने वो भी न करने दिया 

कफ़स की कशिश में कमी कब हुई 
साये जुल्फों में खुद को तड़पने दिया 

               उनकी खामोशियों का शिकवा क्या करें 
               अपनी तन्हाइयों ने न मिलने दिया 

बाद मुद्द्त मिले तो  देखते रह गए 
बेबसी ने लबों को हिलने न दिया 

              चाहते तो चमन खिल ही जाता कभी 
              खुद को वीरानियों में भटकने दिया 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें