खोलकर हृदय की बंद खिड़की
झांक रहे किसके प्यासे नयन
अन्तर का मूक प्यार
मुखरित हो बार बार
आज करने लगा
मधुमय गुन्जन
परिचित सी तुम अजान
तुमने छू दिए प्राण
आज हँसा फूल सा
मन का ये गगन
भूला हूँ पथिक क्लान्त
मंजिल निर्जन नितान्त
दीप डगर हाथ लिए
भोली सी चितवन
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