माना कि तुम हमारे तलबगार अब नहीँ
कैसे कहोगे तुम कि मेरा प्यार अब नहीँ
हम न बनेंगे राह की दीवार कभी भी
दिल को जलाके ख़ाक बनायेंगे हम यहीं
अपनी वफ़ा के लहू से सींचा है गुलिस्तां
लेकिन उसकी बहार के हकदार हम नहीँ
खायें है धोखे हमने वफ़ा के नाम पर
लेकिन कहेंगे फिर भी गुनहगार हम नहीँ
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