कैसे करूँ बयां ग़मे जिंदगी आज
शहरे वफ़ा के लोग घूरे है मुझे आज
माना कि जिंदगी यूँ ही भटकेगी दर बदर
तुम होश में तो आओ क्यों बेवफ़ा हो आज
आ जाओ तो लिखूँ मैकोई गीत या ग़ज़ल
हर गीत कर रहा है तुम्हारे बदन पे नाज़
अाया हूँ दर्द की हर हद से गुज़र कर
छालों पे पाँव के मरहम लगाओ आज
कहाँ तक जलाऊँ दीप मज़ारों के आसपास
अब रोशनी करो मेरी जिंदगी में आज
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें