कभी दूर रहके भी पास थे अब पास रहके भी दूर है
जाने क्यों हुए ये फासले यही सोचके मजबूर है
क्या ग़िला करें किस बात पर
क्यों निगाह तुमने फेर ली
किस बात पर नाराज़ हो
क्यों हमसे बाज़ी खेल ली
क्यों निगाह तेरी बदल गई
हुआ ऐसा कैसा कसूर है
दिल मेरा तड़प रहा यहाँ
वहाँ तुम भी तो हो परेशां
दिल ज़ख्म खाए पड़ा हुआ
किसको दिखाएँ हम निशां
अब मान जाओ कहा मेरा
माफ़ करदो हुआ जो कसूर है
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