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बुधवार, 18 नवंबर 2015

कोयलिया गाने लगी



आज जाने कोयलिया क्यों गाने लगी
मेरे मन की कली भी मुस्कुराने लगी

             दिल में उमंगो की  क्यारी खिल उठी
             मन की बगिया भी आज महक उठी

हर कली खिलके गीत गाने लगी
चंपा चमेली भी खुशबु लुटाने लगी

            तेरे पाँव की आहट  भी आई तो है
            लगता है उस पार से कोई आने को है

हर आहट पे तेरी खुशबु सी आने लगी
मन ही मन मै तो सपने सजाने लगी

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