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गुरुवार, 1 अक्टूबर 2015

बिखरे पन्ने -कविताओ का संग्रह




मेरी इन कविताओ को पढ़कर कोई मुझे कवयित्री समझ बैठे तो मै समझती हूँ यह उसकी भूल होगी।
अपनी पहली टूटी -फूटी कविता जब मै दसवी कक्षा में पढ़ती थी, तब लिखी थी।  तबसे यह क्रम
कैसे चलता रहा, मुझे कुछ याद नहीं आ रहा।   जीवन मेँ  अभावों का चोली -दामन  का साथ रहा।
कल्पना मेरी चिरसंगिनी रही है।   मेरी कविताओ में जहाँ एक ओर उमंगती हुई भावनाए तरंगित
मिलेगी वहाँ दूसरी ओर दामन से बाँधी हुई टीसों की परिध्वनि भी।

मन में जो आया लिख दिया, दोबारा उसके बारे में सोचा तक नहीं, लिख लिखकर कागज़ की पर्चियां
इकट्ठी करती थी।   मुझे पता भी न था कभी इन कागज़ की पर्चियों की कभी आवश्यकता भी पड़ेगी।
एक दिन मेरे बेटे ने वो सारी पर्चिया देखकर कहा  कि इनकी एक पुस्तक मै छपवाने जा रहा हूँ
आप तो दो शब्द लिख दो।   इस संग्रह में कुछ साल नई / पुरानी कविताओ का समावेश  है।   इनमे से
कोई भी कविता आपको भाव -विभोर कर सके तो मुझे अपार हर्ष होगा।

इसका श्रेय मै अपने बेटे को देना चाहती हूँ जिसकी बदौलत यह पुस्तक आपके समक्ष लाने का
उत्साह जुटा पाई।   मैने अपने बेटे से ही कम्प्यूटर पर ब्लॉग बनाकर लिखना सीखा।   यह सब उसके
प्रयास का ही परिणाम है जो आज आपके सामने है।

यह पुस्तक अपने सभी पाठकों को सप्रेम समर्पित करती हूँ।  आशा है आपको पसंद आयेगी।

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