यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, 17 जनवरी 2018

महल हमारे न टूट जाएँ

जिंदगी के फैसले जाने क्या हो जाएँ
यादों के सिलसिले जुड़ें या टूट जाएँ

वक्त की हलचल बनी हुई सी है
जाने कब किस मोड़ पे ले जाए

हर कदम सोचकर हम बढ़ा रहे हैं
मंजिल पे कदम न कहीं डगमगाएं

गैरों की बातों का शिकवा नहीं है
अपनों के अफ़साने हमको रुलाएं

हकीकत में हर लम्हा हँसके बिताया
ख्वाबों के महल हमारे न टूट जाएँ
@मीना गुलियानी 

1 टिप्पणी: