लम्हों की तितलियाँ न जाने क्यों
फुर्र से उड़ जाती पकड़ में न आती
मैं उनके पीछे पीछे दौड़ भी लगाती
पर अपने हाथ ही मलते रह जाती
वो मेरे हाथ से यूँ ही फ़िसल जाती
मैं चुपचाप सोच में बैठी रह जाती
उनको न पकड़ पाने के कारण मैं
अपने मन ही मन में हूँ पछताती
फिर नित्य ही मन को धैर्य बँधाती
प्रतिदिन नई आशा मन में जगाती
@मीना गुलियानी
फुर्र से उड़ जाती पकड़ में न आती
मैं उनके पीछे पीछे दौड़ भी लगाती
पर अपने हाथ ही मलते रह जाती
वो मेरे हाथ से यूँ ही फ़िसल जाती
मैं चुपचाप सोच में बैठी रह जाती
उनको न पकड़ पाने के कारण मैं
अपने मन ही मन में हूँ पछताती
फिर नित्य ही मन को धैर्य बँधाती
प्रतिदिन नई आशा मन में जगाती
@मीना गुलियानी
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