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रविवार, 25 मार्च 2018

तेरी याद

हर रोज़ सुबह की धूप
खिड़की के झरोखों से
छनकर मुझ तक आती है
फूलों और पत्तों पर
चमक अपनी लुटाती है
मलयानिल के झोंके भी
सुरभि ,मकरंद लाते हैं
उनकी महक जादू जगाती है
हवा में जब तुम्हारी ज़ुल्फ़
यूँ ही लहराती है
लगता है कोई बदली
घुमड़कर छा  जाती है
साँसों में इक सिहरन
सी दौड़ जाती है
धड़कन मेरी थम जाती है
तेरी पायल की रुनझुन
मधुर गीत सुनाती है
दिल पे बिजली सी
कौंध कौंध जाती है
शाम  होते ही  तेरी याद
मुझ तक दबे पाँव
रोज़ चुपचाप चली आती  है
दिल में हलचल मचाती है
नई पुरानी यादें दोहराती है
जब मैं थक जाता हूँ
अपनी आग़ोश में सुलाती है
@मीना गुलियानी

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