यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, 23 सितंबर 2019

प्रत्युत्तर देती है

सूरज ये समझने की भूल न करना
कि सिर्फ तुममें ही आग है यह
आग तो हर नारी में विद्यमान है जो
वक्त आने पर शोला बन जाती है
नारी परिस्थितियों के अनुसार ही
कभी शोला तो शबनम बन जाती है
जब कोई विपदा उस पर टूटती है तो
ज्वालामुखी सी वो धधक उठती है
जब उसमें करुणा की धार बहती है
वही  नारी तब शबनम बन जाती है
उसको जब कोई ललकारता है तब
नारी उसके अनुरूप प्रत्युत्तर देती है
@मीना गुलियानी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें