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सोमवार, 17 फ़रवरी 2020

जख्म हरा रहता है

मौसम अपना रंग बदलते रहते हैं
पर कुछ ज़ख़्म हमेशा हरे रहते हैं
बेवफा शीशे का दिल तोड़ते ही हैं
काँच चुभते हैं जख़्म होते रहते हैं
लोग अपने वादों से भी मुकरते हैं
दिल को घायल वो यूँ भी करते हैं
कटु वचनों से आहत वो करते हैं
ईश्वर के न्याय से भी न डरते हैं
कुछ मंज़र यादों के भी उभरते हैं
उनके भी ज़ख़्म हरे ही रहते हैं
वक्त गुज़रने से भी न भरते हैं
@मीना गुलियानी

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