दूर है नदी का किनारा
जल है कितना गहरा
नैया है मेरी टूटी हुई
मांझी बिन पतवार बिना
फिर दिल ने तुझे पुकारा
पर तुम नहीं आये
चाँद फिर निकल आया
दिल देखकर जल उठा
रो रोकर इस दिल ने सदा दी
मस्त बहारो का मौसम बीता
कलियाँ कुँवारी रह गई
उनका यौवन कुम्लहा गया
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