क्या पता कि आज की
कल मिले डगर नहीं
उम्र की बहार यह
बीत जाए यूँ नहीं
हुस्न का शबाब यह
रीत जाए कल नहीं
ये नज़र झुकी झुकी
आरज़ू घुटी घुटी
इस जवान चाह की
यह घटा उठी उठी
फूल गंध की महक
बुलबुलें रहीं चहक
इस सिंगार पर न क्यों
जाए ये नज़र बहक
रूप चाँद सा खिला
चाह की ये रागिनी
जिंदगी का आसमाँ
प्यार की ये चाँदनी
प्यार से उठा नज़र
देख लो हमे ज़रा
क्या पता कि आज की
कल मिले डगर नहीं
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