यह कैसी है रात्रिबेला की निस्तब्धता
तुम्हारा बिना आहट किये चले आना
होठों पर चुप के ताले लगा देना
ताकि वातावरण भी शान्त रहे
तुम्हारी बातों में कोई खलल न पड़े
तुम यूँ ही चुपचाप मेरे पास बैठे रहो
मै भी ऐसे हो तुम्हें देखती रहूँ
नज़रों से बातें हों अठखेलियाँ हों
पर मुँह से कुछ न बोलें
ताकि अपना प्यारा दिवास्वप्न
छिन्न भिन्न न करदें ज़माने वाले
कहते है दीवारों के भी कान होते है
कहीं कोई अफ़साना न बन जाए
इसलिए चुप्पी साध ली है हमने
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