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शनिवार, 27 मई 2017

ये क्या है माज़रा

तुझको देखने से कभी मन नहीं भरा
मेरी कसम बताओ ये क्या है माज़रा

जिंदगी तो मेरी इक लम्बी सुरंग है
जहाँ पे खड़ा हूँ मै वहीँ कोई सिरा

जाने क्या सोचते रहते हो तन्हा तुम
फिरता  अंधेरों में जैसे कोई डरा डरा

सिर छुपाने के लिए कोई जगह चाहिए
यातनाओं से इस दिल का वास्ता पड़ा

गुलशन उजड़ने के बाद भी निशाँ बाकी हैं
कभी हुआ करता था ये चमन हरा भरा
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 25 मई 2017

अठखेलियाँ बहुत करती है

मुझसे धूप अठखेलियाँ बहुत करती है
एक छाया सी सीढ़ी उतरती चढ़ती है

दिल में दरारें गहरी पड़ गईं हैं
जैसे ये कोई बंजर धरती है

तुमको छू लेने भर ही सहसा
गुलाबों से ओस जैसे झरती है

तुम मेरा साथ दे दो इन अंधेरों में
एक चिड़िया धमाकों से सिहरती है

आगे निकल गए घिसटते हुए कदम
मूरत संवारने में और भी  बिगड़ती है
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 20 मई 2017

हवन वो करने लगा है

फिर हवाओं का रुख बदलने लगा है
सोया हुआ जगा आँखे मलने लगा है

जिंदगी के सफर का पहिया टूटा पड़ा था
मिले तुम तो फिर से वो चलने लगा है

 आग सीने में अब तक ठंडी पड़ी थी
यकायक सा पानी उबलने लगा है

जो रुका था अलावों की आंच लेने को
जली जब हथेली तो मसलने लगा है

जिंदगी अँधेरे में होम जिसने करदी
उजाले में हवन वो करने लगा है
@मीना गुलियानी


शुक्रवार, 19 मई 2017

बबूल के साये में लाये तुम

रहनुमाओं की अदा पे फ़िदा है दुनिया
इस बहकती दुनिया को सम्भालो तुम

दर्दे दिल का पैगाम भी उनको पहुँचेगा
कोई नश्तर सीने में उतारोगे जब तुम

कहाँ तक सहेंगे जुल्मों सितम हम
कोई रोशनी ढूँढ़ लाओ कहीं से तुम

तेरे आने से  रौनके महफ़िल जवां हुई
कोई खुशनुमा ग़ज़ल गुनगुनाओ तुम

सोचा था कि दरख्तों में छाँव होती है
पता न था बबूल के साये में लाये तुम
@मीना गुलियानी

बुधवार, 17 मई 2017

सवालों की बारिश लीजिए

तुम चाहते हो पत्ते भी गुनगुनाएँ
पेड़ों से पहले उनकी उदासी लीजिए

जीना मरना तो लगा रहेगा यहाँ पर
कुछ रोज़ ज़रा सुकून से जी लीजिए

अपने होंठों को सीकर तुम चुपचाप रहे
मगर खामोशी ने करदी मनादी लीजिए

हैरा थे अपने अक्स पे घर के तमाम लोग
शीशा चटकने पे सवालों की बारिश लीजिए
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 16 मई 2017

न सीरत बिगड़नी चाहिए

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी ये आग जलनी चाहिए

दर्द की लहर अब पर्वत नुमा हुई
इसमें कोई धारा निकलनी चाहिए

दरों दीवारें भी कमज़ोर हुई अब तो
 रिवाज़ों की बुनियाद हिलनी चाहिए

दिल बहलाओ मगर इतना न तुम उड़ो
सपने बिखरे न सीरत बिगड़नी चाहिए
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 15 मई 2017

कमाल देखिए

लफ्ज़ एहसास जताने लगे कमाल देखिए
ये तो माने भी छुपाने लगे कमाल देखिए

कल जो लोग दीवार गिराने आये थे
वही दीवार उठाने लगे कमाल देखिए

उनको पता नहीं कि उनके पाँवों से
गर्द भी गुलाल हुई कमाल देखिए

समुद्र की लहरें भी उठती चली गईं
यूं चाँदनी बवाल हुई कमाल देखिए

 उनका जहाँ में ठिकाना नहीं रहा
हमको मिला मुकाम कमाल देखिए
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 8 मई 2017

मशाल देखिए

बरसात आई तो दरकने लगी ज़मीं
कैसा कहर है बरपा बारिश तो देखिए

कैसी जुम्बिश हुई है जिस्म में मेरे
इस परकटे परिंदे की कोशिश देखिए

किसको पता था मर मिटेंगे तेरी अदा  पे
कैसे उठा हाथ चला तेरी अलकों पे देखिए

मेरी जुबान से निकली तो नज़्म बनी
तुम्हारे हाथोँ में आई तो मशाल देखिए
@मीना गुलियानी 

रविवार, 7 मई 2017

कितने एतराज़ मै उठाता हूँ

मै तुम्हें भूलने की कोशिश में
खुद को  कितने करीब पाता हूँ

तू बनके रेल यूँ गुज़रती है
मै बना पुल सा थरथराता हूँ

तेरी आँखों में जब भी मै देखूँ
अपनी  राहों को भूल जाता हूँ

रौनके ज़न्नत न रास आई मुझे
जहन्नुम की खुशियाँ भी लुटाता हूँ

बहुत सोचता पर न कहता हूँ
कितने एतराज़ मै उठाता हूँ
@मीना गुलियानी


शनिवार, 6 मई 2017

काटो प्रपंच का मायाजाल

उठो नवयुवको थामो मशाल
आह्वान दे रहा महाकाल

कर्मवीर तुम धर्मवीर तुम
मत होना कभी अधीर तुम
तुम सिंहनी के सपूत हो
दो दुश्मन का वक्ष चीर तुम
प्रज्वलित  करो चेतना ज्वाल

संस्कारहीन हो रहा समाज
 शान्ति पथ दिखलाओ आज
भरो प्राणों में संकल्पशक्ति
करो नाश दुराचार का आज
काटो  प्रपंच का मायाजाल
@मीना गुलियानी

शुक्रवार, 5 मई 2017

करदो स्वयं समर्पण

जैसे साधक अपने गुरु को करता अपना सब कुछ अर्पण
 ऐसे ही तुम अपने देश के हित करदो सर्वस्व समर्पण

दीपक और  पतंगे को देखो
चातक और चंदा को देखो
गंगा की धारा को देखो
सबका अनन्य भाव से अर्पण

अर्जुन करे कान्हा से जैसे
राधा करे कृष्ण को जैसे
वंशी करे होंठों से जैसे
सुखद भाव से अर्पण

सीप और मोती के जैसे
शिशुओं का माता से जैसे
बूंदों का बादल को जैसे
होता है अस्तित्व समर्पण
@मीना गुलियानी