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रविवार, 7 मई 2017

कितने एतराज़ मै उठाता हूँ

मै तुम्हें भूलने की कोशिश में
खुद को  कितने करीब पाता हूँ

तू बनके रेल यूँ गुज़रती है
मै बना पुल सा थरथराता हूँ

तेरी आँखों में जब भी मै देखूँ
अपनी  राहों को भूल जाता हूँ

रौनके ज़न्नत न रास आई मुझे
जहन्नुम की खुशियाँ भी लुटाता हूँ

बहुत सोचता पर न कहता हूँ
कितने एतराज़ मै उठाता हूँ
@मीना गुलियानी


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