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शनिवार, 27 मई 2017

ये क्या है माज़रा

तुझको देखने से कभी मन नहीं भरा
मेरी कसम बताओ ये क्या है माज़रा

जिंदगी तो मेरी इक लम्बी सुरंग है
जहाँ पे खड़ा हूँ मै वहीँ कोई सिरा

जाने क्या सोचते रहते हो तन्हा तुम
फिरता  अंधेरों में जैसे कोई डरा डरा

सिर छुपाने के लिए कोई जगह चाहिए
यातनाओं से इस दिल का वास्ता पड़ा

गुलशन उजड़ने के बाद भी निशाँ बाकी हैं
कभी हुआ करता था ये चमन हरा भरा
@मीना गुलियानी 

4 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 29 मई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. जीवन की स्थितियां ,परिस्थितियां काव्य का रूप बनकर उभरती हैं जब उन्हें भावों की कसौटी पर परखा जाता है। सुन्दर रचना। बधाई मीना जी।

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