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गुरुवार, 25 मई 2017

अठखेलियाँ बहुत करती है

मुझसे धूप अठखेलियाँ बहुत करती है
एक छाया सी सीढ़ी उतरती चढ़ती है

दिल में दरारें गहरी पड़ गईं हैं
जैसे ये कोई बंजर धरती है

तुमको छू लेने भर ही सहसा
गुलाबों से ओस जैसे झरती है

तुम मेरा साथ दे दो इन अंधेरों में
एक चिड़िया धमाकों से सिहरती है

आगे निकल गए घिसटते हुए कदम
मूरत संवारने में और भी  बिगड़ती है
@मीना गुलियानी 

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