मै बहुत कुछ सोचता हूँ पर कहता नहीं
कहना तो क्या सच बोलना भी दरकिनार
अब किसी को दरार नज़र आती नहीं
घर की दीवारों पर हैं पर्दे बेशुमार
कैसे बचकर चलें सूरत नज़र आती नहीं
रहगुज़र घेरे हुए हैं लिए तोहमतें हज़ार
रौनके ज़न्नत भी रास न आई मुझे
सुकूँ मिला था जहन्नुम में बेशुमार
@मीना गुलियानी
कहना तो क्या सच बोलना भी दरकिनार
अब किसी को दरार नज़र आती नहीं
घर की दीवारों पर हैं पर्दे बेशुमार
कैसे बचकर चलें सूरत नज़र आती नहीं
रहगुज़र घेरे हुए हैं लिए तोहमतें हज़ार
रौनके ज़न्नत भी रास न आई मुझे
सुकूँ मिला था जहन्नुम में बेशुमार
@मीना गुलियानी