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सोमवार, 19 जून 2017

सपने ज़रा प्यारे तू देख

दुःख का दरिया दूर तक फैला हुआ
बाजुओं की ताकत देख धारे न देख

जंग जीवन की लड़नी पड़ेगी तुझे
हकीकत ये खौफ के मारे न देख

न हो मायूस देख धुंधलका इस कदर
रोज़नों को भी इन दीवारों में देख

चमका ले किस्मत छू ले आसमां तू
घर अँधेरा है तो क्या  तारे भी देख

दिल बहला ले मगर इतना न उड़
सम्भल के सपने ज़रा प्यारे तू देख
@मीना गुलियानी

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत पसंद आई, यह रचना..अंतिम दो लाइन..यथा,,
    दिल बहला ले मगर इतना न उड़
    सम्भल के सपने ज़रा प्यारे तू देख.
    ....
    धन्यवाद, आपको,

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