मेले में गर भटकते तो ठौर मिल जाता
घर में भटके हैं कैसे ठौर अपना पायेंगे
आँच कुछ बाकी है धुआँ निकलने दो
देखना मुसाफिर इसी बहाने आयेंगे
पाँव जल में इस कदर न हिलाओ तुम
बुद्बुदे पानी के हिलके टूट ही जायेंगे
गीत मेरे जो अधूरे और अछूते रह गए
देखना कल तुमको मेरी याद दिलायेंगे
@मीना गुलियानी
घर में भटके हैं कैसे ठौर अपना पायेंगे
आँच कुछ बाकी है धुआँ निकलने दो
देखना मुसाफिर इसी बहाने आयेंगे
पाँव जल में इस कदर न हिलाओ तुम
बुद्बुदे पानी के हिलके टूट ही जायेंगे
गीत मेरे जो अधूरे और अछूते रह गए
देखना कल तुमको मेरी याद दिलायेंगे
@मीना गुलियानी
बहुत अच्छी रचना. पसंद आई.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.