कबसे समाया तू मेरे मन में
कैसे इसका इज़हार करूँ
दुविधा के ऊँचे पर्वत को
कैसे मैं अब पार करूँ
जीवन के पथ की ये देहरी
हर दम आती यादें तेरी
प्रीत की उलझी भंवरों से
कैसे तुम बिन आज तरूं
तेरे बिना हम हुए अधूरे
मिले तुम सपने हुए पूरे
इक डोरी से दोनों जुड़े
कैसे सपने साकार करूँ
@मीना गुलियानी
कैसे इसका इज़हार करूँ
दुविधा के ऊँचे पर्वत को
कैसे मैं अब पार करूँ
जीवन के पथ की ये देहरी
हर दम आती यादें तेरी
प्रीत की उलझी भंवरों से
कैसे तुम बिन आज तरूं
तेरे बिना हम हुए अधूरे
मिले तुम सपने हुए पूरे
इक डोरी से दोनों जुड़े
कैसे सपने साकार करूँ
@मीना गुलियानी