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शुक्रवार, 14 जुलाई 2017

अकेले मन घबराता है

आज फिर दिल मेरा उड़ा उड़ा जाता है
खुशियों का लेके पैगाम कोई आता है

हवा में संदली दुपट्टा जब लहराता है
खुशबू से तन मन मेरा महका जाता है

गेसुओं की लटें  माथे पे बल खाती हैं
सर्पिणी सी बन हवा में वो लहराती है

तेरे तब्बसुम से चाँद भी शर्मा जाता है
बादलों को भी देखके पसीना आता है

बौछारें बनके वो मुझपे बरस पड़ती हैं
रिमझिम सी टिप टिप बूँदें पड़ती हैं

ऐसा मौका कहाँ रोज़ रोज़ आता है
चले भी आओ अकेले मन घबराता है
@मीना गुलियानी


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