यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, 15 अप्रैल 2020

वो भी क्या दिन थे

वो भी क्या दिन थे अपने सुहाने
याद आते हैं अब वो गुज़रे जमाने
वो पेड़ों के झुरमुट में छिप जाना
उस झरने के पानी के नीचे नहाना
कितनी प्यारी तुम्हारी थीं वो बातें
आँखों ही आँखों में कट जाती रातें
वो मोहब्बत भरे दिलों की सौगातें
कोई लौटादे फिर से वो मुलाकातें
@मीना गुलियानी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें