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शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

सुबह की धूप

हर रोज़ सुबह की धूप
खिड़की के झरोखों से
छनकर मुझ तक आती है
फूलों और पत्तों पर
चमक अपनी लुटाती है
मलयानिल के झोंके भी
सुरभि, मकरन्द लाते हैं
उनकी महक जादू जगाती है
हवा में जब तुम्हारी जुल्फ़
यूँ ही लहराती है
लगता है कोई बदली
घुमड़कर छा जाती है
साँसों में इक सिहरन
 दौड़ जाती है
धड़कन मेरी थम जाती है
@मीना गुलियानी 

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