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शनिवार, 2 सितंबर 2017

घुट घुट के न मर जाऊँ

टूटी  है वीणा टूटी है आशा
व्यथित मन की हूँ परिभाषा
बोलो गीत मैं कैसे गाऊँ
कैसे मै  अब मुस्काऊँ

कब जाने ये बंधन टूटा
जाने क्यों तू मुझसे रूठा
जोड़ूँ कैसे मैं टूटे रिश्ते
कैसे दिल को धीर बँधाऊँ

सारे अपने छूट गए हैं
 रिश्ते नाते टूट गए हैं
अपने पराये से लगते हैं
किसको मैं मीत बनाऊँ

आसमान  से टूटे तारे
बिखरे हैं बनके अंगारे
सुलग रहा है मन मेरा
जाने क्यों मैं अकुलाऊँ

हाल कोई तो पूछे मेरा
काश कोई तो होता मेरा
किसे दिखाऊँ दिलके छाले
घुट घुट के न मर जाऊँ
@मीना गुलियानी

1 टिप्पणी:

  1. हतास मन की सुंदर व्याख्या.
    पढने से स्पष्ट हो गया-जहाँ न जाये रवि, वहां पहुचे कवि.
    धन्यवाद.

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