कितने बरस बीत गए उन लम्हों को
अब भी कभी तुमको याद आती है
जब वृन्दावन में दर्शन को गए थे
इतनी भीड़ में भी लगता है प्रभु हमें
खुद ही ढूँढ़ते हुए मिले थे उनकी
वो छवि प्यारी मेरे मन मंदिर में
आज भी समाई हुई है अब तो
नीम के पेड़ ने भी निम्बोली गिराई है
सहेलियाँ झूला झूल रहीं थीं कान्हा
सबको बारी बारी से झूला झुला रहे थे
फिर तो जब श्याम कुंड में स्नान
किया था और फिर तैयार होकर
गोवर्धन जी की परिक्रमा की थी
सारे दृश्य आज भी रोमांचित करते हैं
@मीना गुलियानी
अब भी कभी तुमको याद आती है
जब वृन्दावन में दर्शन को गए थे
इतनी भीड़ में भी लगता है प्रभु हमें
खुद ही ढूँढ़ते हुए मिले थे उनकी
वो छवि प्यारी मेरे मन मंदिर में
आज भी समाई हुई है अब तो
नीम के पेड़ ने भी निम्बोली गिराई है
सहेलियाँ झूला झूल रहीं थीं कान्हा
सबको बारी बारी से झूला झुला रहे थे
फिर तो जब श्याम कुंड में स्नान
किया था और फिर तैयार होकर
गोवर्धन जी की परिक्रमा की थी
सारे दृश्य आज भी रोमांचित करते हैं
@मीना गुलियानी
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