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शनिवार, 9 नवंबर 2019

संभलकर रखना कदम

ख़्वाबों के शहर में बसते हैं हम तुम
इनमें खो न जाना कहीं मेरे हमदम
सपने तो सपने होते हैं बिछुड़े न हम
देखो सपना न टूटे बिखरें न कहीं हम
भूली बिसरी यादों का सा है ये उपवन
बसाया आशियाना जहाँ रहें हम तुम
खुला आसमां चाँद सितारे और हम तुम
ठंडी चले पुरवाई गीत सुनाये ये मौसम
 फूलों भरा गुलशन संभलकर रखना कदम
@मीना गुलियानी 

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