यह ब्लॉग खोजें

रविवार, 14 जून 2020

बावरा मन - कहानी

रिशु और सुनील दोनों बचपन के साथी थे।  एक साथ पढ़े बड़े हुए।  अब वो कालेज की पढ़ाई कर रहे थे।  दोनों ही पढ़ने में बहुत ही निपुण थे।  उनकी कक्षा के सभी विद्यार्थीगण और अध्यापकगण बहुत ही प्रभावित थे।  दोनों ही खेलों में भी और कालेज के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते थे।   उन दोनों के परिवार के लोग अच्छे संस्कारों के लोग थे और वही संस्कार अपनी संतान को भी दिए थे।  रिशु तो बहुत ही खूबसूरत दिखती थी।  उसके कमर तक घुँघराले केश उसकी खूबसूरती को और बढ़ाते थे।  लाल रंग का दुपट्टा उसके सफेद रंग के सूट पर कंट्रास्ट करके उसने पहना हुआ था।  पैरों में काली चप्पल उसके गोरे गोरे पाँव की ख़ूबसूरती और बढ़ा रही थी। दोनों बस स्टाप पर बस की इंतज़ार में लाईन में खड़े प्रतीक्षा कर रहे थे।   सबकी निगाहें उन दोनों की जोड़ी पर टिकीं थीं।  तभी बस आई और उस पर चढ़ने की सबको जल्दी थी।  रिशु को आगे बढ़ने के लिए सुनील ने साईड से रास्ता बना दिया खुद वो उसके पीछे खड़ा हो गया।  अब वो जल्दी से बस में बैठ गई और साथ की सीट पर सुनील बैठ गया।  रिशु ने कहा - सुनील आज अगर तुम मेरे साथ न होते तो यह बस तो मिस हो ही जाती।  इतने रश में चढ़ना मुश्किल था मेरे लिए।  इसके लिए तुम्हें धन्यवाद।  सुनील बोला - माई गॉड इतने तकल्लुफ की क्या जरूरत है।  यह तो मेरा फर्ज बनता था आखिर हम बचपन के साथी हैं दोनों को साथ ही जाना था।    कालेज आ गया था और वो दोनों उतर  गए।

 आज उनकी परीक्षा थी ।  दोनों ने बहुत ही तैयारी करी हुई थी।  रिशु का पूरा ध्यान ही अपनी कॉपी पर था और उसकी सप्लिमेट्री कॉपी भी भर गई थी।  उसने सारे प्रश्नों के उत्तर सही लिखे थे।  पेपर बहुत अच्छा रहा था।  सुनील ने भी बहुत अच्छी तरह से पेपर किया था।  आज तो सुनील की ममी ने उसे घर से निकलते हुए दही में शक़्कर भी डाल कर खिलाई थी और कहा था - बेटा यह तो अच्छा शगुन होता है आज भगवान की कृपा से तुम्हारा पेपर अच्छा होगा।  सुनील ने जाते हुए ममी के पाँव छूकर आशीर्वाद लिया था।  अब लंच का समय हो गया था वो दोनों घर से अपना टिफिन लेकर आये थे।  दोनों ने इकट्ठे ही एक बैंच पर बैठकर खाना खाया।  फिर उनके कालेज से लौटने का वक्त हो चला था।  दोनों ही फिर से बस स्टाप पर आ गए। अब वो दोनों ही बस में बैठ गए।  बस अपने गंतव्य पर चल पड़ी।   घर आते ही दोनों बस से उतरे और अपने अपने घर की ओर चल पड़े।

रिशु के पिताजी एक सरकारी महकमे में अच्छी पोस्ट पर काम करते थे।  सुनील के पिताजी एक मल्टीनेशनल कम्पनी में अच्छी पोस्ट पर कार्यरत थे।  दोनों परिवारों में अच्छा मेलजोल था।  हर त्यौहार पूरी कालोनी के लोग उसी कालोनी के कैम्पस में इकट्ठे होकर मनाते थे।  होली का दिन था रिशु तो अपने हाथों में पिचकारी भरकर सुनील को रंगने के लिए तैयार बैठी थी।  सुनील ने भी अपनी मुट्ठी में रंग भरा हुआ था जो उसने रिशु के सर पर डाल दिया रिशु का गोरा रंग और पूरे कपड़े उस रंग में रंग गए थे।   सुनील ने भी सफेद रंग का कुर्ता पायजामा पहना हुआ था जो पिचकारी से रंगीन हो चुका था।   दोनों ने सपरिवार मस्ती से होली खेली और फिर दोनों परिवारों ने एक दूसरे को मिठाई भी खिलाई।

अब सुबह होते ही दोनों ने जब अपने अपने चेहरे शीशे में देखे तो गुलाल का रंग तो छूट गया था पर दोनों के अंग में प्रीत का रंग भरा हुआ था।   आज उनके कालेज की छुट्टी थी।  दोनों ने ही फिल्म देखने के लिए ममी से इजाज़त ले ली।  फिल्म का नाम भी' होली आई रे 'था जो मिनर्वा पर लगी हुई थी।  दोनों के टिकट सुनील ने लिए और अंदर हाल में आ गए।  अब दोनों ने एक दूसरे का हाथ थाम रखा था।  सुनील बोला - क्या तुम मुझे भी उतना ही चाहती हो जितना कि मैं तुम्हें चाहता हूँ।   मेरा मन तो बिल्कुल तुम्हारे प्यार में बावरा मन हो चुका है। तुम बताओ कि तुम्हारे मन में मेरे प्रति कैसे विचार हैं।  अगर तुम मुझे पसंद करती हो तो मैं भी अपनी ममी से तुम्हारी ममी से कहकर तुम्हें हमेशा के लिए अपना बना लूँगा।  रिशु बोली - तुम्हें बहुत पसंद करती हूँ पर पहले हम दोनों पढ़ाई पूरी कर लें फिर अच्छी नौकरी मिलने पर ही शादी करेंगे।  सुनील बोला - ठीक है मुझे तब तक का इंतज़ार रहेगा। अब दोनों ने फिल्म देख ली थी और वापिस घर लौट आये।  अब फिर उनकी परीक्षा खत्म हो चुकी थी।  दोनों का रिजल्ट भी अच्छा आया प्रथम श्रेणी में दोनों पास हुए।  दोनों की नौकरी भी मल्टीनेशनल कम्पनी  में लग गई।   अब सुनील ने  रिशु से कहा - तुम्हें अपना वादा याद है अब तो हम नौकरी भी साथ साथ कर रहे हैं अब तो मैं अपनी शादी की अर्जी तुम्हारी ममी जी के सामने रख दूँ।  रिशु ने शर्माते हुए कहा - ठीक है।  अब तो मौका मिलते ही छुट्टी के दिन सुनील ममी के साथ रिशु के घर आया।  रिशु की ममी ने उनका स्वागत किया।  सुनील की ममी ने बिना किसी भूमिका बांधे ही सुनील के लिए उनकी बेटी का रिश्ता मांग लिया।  दोनों के परिवार इस रिश्ते के लिए बिना दहेज के शादी करने पर  राज़ी थे इसलिए चट मंगनी और ब्याह वाली कहानी दोनों के रिश्ते पर भी लागू हुई। पंडित जी ने शुभ मुहूर्त के अनुसार दोनों का विवाह सम्पन्न करवाया।  अब रिशु और सुनील दोनों दूल्हा दुल्हन बन चुके थे।  दोनों के बावरे मन एक दूसरे को अपनाकर सदा के लिए एक दूसरे में खो गए उनके सपने सच हो गए।
@मीना गुलियानी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें