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शुक्रवार, 12 जून 2020

मेरे भी कई ख़्वाब थे

मेरे भी कई  ख़्वाब थे
सोचा था स्कूल जाऊँगा
पढ़ कर अफ़सर बनूँगा
माँ बाप की सेवा करूँगा
खूब पैसे कमाऊँगा और
उन्हें काम से मना करूँगा
घर में राशन नहीं, फाके हैं
ख़्वाब तोड़ने पड़े बोझ को
ढोना ही पड़ा पता नहीं
कब ख़्वाब पूरे होंगे मेरे
बाल श्रमिक बनना पड़ा
@मीना गुलियानी 

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